थकन.....
थक ही जाते हैं एक दिन सभी
जान देने वाले भी, और
जान लेने वाले भी।
दौनों ही यह जानते हैं, कि
उनकी यह हैसीयतें दायमी नहीं हैं,
और दौनों ही इस सच से आँखें चुराते हैं।
बस थक जाते हैं हारते हारते
जीतते जीतते
मगर डटे रहते हैं एक दूसरे के सामने
उखड़ी हुई साँसों के संभलने तक।
याद आती हैं
अपने पड़ोस में रहने वाली शम्मो बूआ
देखता था उनको गाहे बगाहे
अपने ही बच्चों को पीटते
और फिर थक कर, एक कोने में बैठकर
पहरों अकेले रोते।
कोई अज़ीम नहीं
थक कर हारे हुए, और
जीत कर थके हुए लोगों में
अज़ीम है वह थकन
जो अहसान करती रहती है
हमारी तहज़ीब पर
हमारी इंसानियत पर।
Wednesday, March 11, 2020
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